मंदिर जी का परिचय

श्री 1008 शांतिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र सोनीपत के मौहल्ला चौधरीयान में बड़ा मंदिर जी से मात्र 300 मीटर की दुरी पर स्थित है। यह बात वर्ष 1904 की है, उस समय मंदिर जी के स्थान पर एक जैन घर हुआ करता था। उस घर में डाको देवी नामक एक महिला एवं उनका परिवार निवास करता था। जब भी डाको देवी रसोई घर में रोटी बेलती तो उनका चकला अपने आप उल्टा हो जाता था। कई बार उनको देवो ने सवप्न में आकर रसोईघर के नीचे भूगर्भ में प्रतिमा जी के होने का संकेत भी दिया था।
डाको देवी ने स्वप्न के बारे में अपने परिवार को बताया। परिवार के सदस्यों ने यह वाक्य उस समय के जैन समाज के समक्ष रखा। जैन समाज के द्वारा भूगर्भ की खुदाई करवाने का निर्णय लिया गया। जब भूगर्भ की खुदाई का कार्य किया गया तो उन्हें खुदाई के दौरान शांतिनाथ भगवान जी की प्रतिमा प्राप्त होती है। प्रतिमा को जैन समाज के लोगो लाकर छोटे जैन मंदिर में स्थापित कर देते है। कुछ समय पश्चात फिर एक बार डाको देवी को स्वप्न में देवो ने आकर प्रतिमा को उसी स्थान पर विराजमान करने को कहा जहाँ से प्रतिमा प्राप्त हुई थी। डाको देवी ने यह बात जैन समाज को बताई तो जैन समाज ने उस स्थान पर चैत्यालय बनवाने का निर्णय लिया।
लेकिन जब भी चैत्यालय का कुछ निर्माण कार्य करवाया जाता तो वह कार्य पूरा नहीं हो पाता। अतः फिर से देवो ने डाको देवी के सवप्न में आकर उनसे कहा की चैत्यालय के निर्माण का पहला द्रव आपके द्वारा ही दिया जाए। डाको देवी के परिवार के द्वारा कुछ धन राशि एवं वह मकान जैन समाज को सौंप दिया गया, तथा इस प्रकार चैत्यालय का निर्माण कार्य पूर्ण हुआ। वर्ष 2001 से 2002 में आर्यिका माता पदम जी का आगमन सोनीपत में होता है। उनके द्वारा स्थानीय जैन समाज को चैत्यालय के ऊपर शिखर का निर्माण करने की सलाह दी जाती है तथा जैन समाज चैत्यालय के ऊपर शिखर का निर्माण कर चैत्यालय को मंदिर जी का रूप दे दिया जाता है। मंदिर जी में मूलनायक प्रतिमा भूगर्भ से प्रकटी भगवान शांतिनाथ जी की विराजमान है। शांतिनाथ भगवान जी की इस प्रतिमा का क्षेत्र में बहुत अतिशय है। प्रतिदिन श्रावक मंदिर जी में आकर प्रतिमा के दर्शन करते है।
देवो के साथ नृत्य करना
मंदिर जी में समय-समय पर अतिशय देखने को मिलते रहे है। सन् 2001-2002 में आचार्य श्री 108 पुष्पदंत जी महाराज की माता आर्यिका पदम जी का सोनीपत बड़ा मंदिर जी में आगमन हुआ। उनको आभास हुआ की सोनीपत में कही भूगर्भ से प्रतिमा प्रकट हुई है। उन्होंने समाज के लोगो से प्रतिमा जी के बारे में पूछा। जैन समाज के द्वारा उन्हें बताया की यहाँ पास ही में एक जैन परिवार के घर में भूगर्भ से श्री शांतिनाथ जी की प्रतिमा प्रकट हुई थी। माता जी ने प्रतिमा के दर्शन करने की इच्छा समाज को व्यक्त की। माता जी की आयु लगभग 85 वर्ष हो चुकी थी, जिस कारण उनको चलने में कठिनाई का सामना करना पड़ता था। उन्हें वाहन की सहयता से मंदिर जी में लाया गया। जैसे ही माता जी ने अपने चरण वाहन के बाहर रखने लगी तभी अचानक झटके से उन्होंने अपने चरण पीछे करते हुए कहाँ की 'तुम मुझे छुओगे' यह सुनकर पास खड़े लोग पीछे हट गए। माता जी के साथ आई उनकी पोती लोगो को समझाती है कि ये आप से नहीं देवो से बात कर रही है। उनकी यह बात सुन वहाँ उपस्थित सभी लोग आश्चर्यचकित रह जाते है। माता जी ने देवो से बात करते हुए कहा की 'पहले में भगवान जी के दर्शन करुँगी, बाद में तुम्हारे साथ नृत्य करुँगी' इतना कहते ही माता जी ने सीढ़िया चढ़कर गर्भगृह में पहुँच प्रतिमा के दर्शन किए। दर्शन करने उपरांत उन्होंने किसी सौलह वर्ष के युवती की भाँति नृत्य किया। वहाँ उपस्थित सभी हैरान होकर सोचने लगे की जिनसे ठीक से चला भी नहीं जा रहा था, वह किसी नवयुवती की भाँति कैसे नृत्य कर सकती है। यह भगवान का ही कोई अतिशय है।
जैन समाज एवं सुविधाए
सोनीपत हलवाई हट्टा में श्री 1008 पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन बड़ा मंदिर जी से मात्र 500 मीटर की दुरी पर मौहल्ला चौधरीयान में श्री 1008 शांतिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर स्थित है। मंदिर जी के आस पास लगभग सौ दिगम्बर जैन परिवारों का समाज है। क्षेत्र में कुल पाँच दिगम्बर जैन मंदिर स्थित है। सभी मंदिरों का संचालन श्री 1008 पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन बड़ा मंदिर जी के द्वारा ही किया जाता है। मंदिर जी में दर्शन करने के लिए आने वाले यात्रियों के लिए रुकने की व्यवस्था बनी हुई है। यात्रियों के रुकने की व्यवस्था सेठ चेतनलाल जैन धर्मशाला तथा पारसदास जैन धर्मशाला में की जाती है। दोनों धर्मशालाओं में दस-दस कमरों की व्यवस्था बनी हुई है। मंदिर जी में जैन मुनि महाराज जी के आने पर रुकने की व्यवस्था त्यागी भवन में की जाती है। बड़ा जैन मंदिर जी के परिसर में ही निर्मित स्कूल में पाँचवी कक्षा तक बच्चों को नाममात्र शुल्क पर शिक्षा उपलब्ध कराई जाती है। जैन समाज द्वारा निर्मित जैन विद्या मंदिर स्कूल सोनीपत में बारहवीं कक्षा तक जैन के साथ-साथ अजैन समुदाय के बच्चों को भी शिक्षा उपलब्ध करवाई जाती है।
क्षेत्र के बारे में
सोनीपत भारत के हरियाणा राज्य में स्थित एक जिला है। सोनीपत नाम संस्कृत शब्द से अपनाया गया है जिसका अर्थ सुवर्णप्रस्थ (सोने की जगह) है। नई दिल्ली से उत्तर में 43 किमी दूर स्थित इस नगर की स्थापना संभवतः लगभग 1500 ई.पू. में आरंभिक आर्यों ने की थी। सोनीपत ऐतिहासिक रूप से प्रमुख घटनाओं का साक्षात्कार करने के लिए अभिज्ञान है। यहां तीन सोनीपत युद्ध हुए थे, जिनमें मुघल साम्राज्य और इस्लामी सुलतानों के बीच महत्वपूर्ण युद्ध हुए थे। सोनीपत की स्थिति ने इसे एक महत्वपूर्ण इतिहासिक स्थान बना दिया है। सोनीपत जनपद का एक प्रमुख नगर है और यह राजनीतिक और प्रशासनिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। हरियाणा राज्य के अनेक सरकारी और निजी क्षेत्र के दफ्तर और संस्थान यहां स्थित हैं। यमुना नदी के तट पर यह शहर फला-फूला, जो अब 15 किमी पूर्व की ओर स्थानांतरित हो गया है। सोनीपत ज़िला एक मैदानी इलाक़ा है। जिनके 83 प्रतिशत हिस्से में खेती होती है। गेहूँ और चावल प्रमुख फ़सलें है, अन्य फ़सलों में ज्वार, दलहन, गन्ना, बाजरा, तिलहन और सब्ज़ियां शामिल हैं। सोनीपत के आस-पास कई सांस्कृतिक स्थल हैं, जो ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। यहां अनेक मंदिर, गुरुद्वारे और ऐतिहासिक स्थल हैं जो आकर्षक हैं। सोनीपत क्षेत्र में धारोहरिक मौजूदगी है जो ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को दर्शाती है। यहां कई पुरातात्विक स्थल और संरक्षित क्षेत्र हैं जो इतिहास प्रेमियों के लिए महत्वपूर्ण हैं।
समिति
श्री 1008 शांतिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र जी के सुचारू संचालन हेतु श्री दिगम्बर जैन मंदिर समिति का निर्माण किया गया है। समिति में कार्यरत सदस्य इस प्रकार है -
प्रधान - श्री सतेन्द्र जैन जी
सचिव - श्री दिनेश जैन जी
कोषाध्यक्ष -श्री इंद्र जैन जी