मंदिर जी का परिचय

सिद्धांत तीर्थ क्षेत्र दिल्ली जयपुर मार्ग पर शिकोहपुर गांव में स्थित है। आचार्यरत्न श्री 108 देशभूषण जी महाराज के परमशिष्य पंचम पट्टाचार्य उच्चकोटि के साधक एवं आत्मर्थी संत, वात्सल्य रत्नाकर, शांत मूर्ति आचार्य श्री 108 बाहुबली महाराज जी का ससंघ मंगल प्रवेश भारत की राजधानी दिल्ली में 9 जुलाई 2000 में हुआ। उस समय क्षेत्र में आस-पास जैन साधु महाराज जी के लिए रुकने की व्यवस्था का प्रबंध नहीं था। सन् 2000 में दिल्ली वर्षायोग यानि चातुर्मास के समय आचार्य श्री की प्रेरणा एवं आशीर्वाद से उत्साहित होकर जैन समाज के अग्रणी श्रद्धालु भक्तगणों ने शिकोहपुर ग्राम को आध्यात्मिक केंद्र के रूप में चयन किया। इस स्थान का नामकरण आचार्य श्री ने सिद्धांत तीर्थ क्षेत्र के नाम से किया। क्षेत्र में चैत्यालय का निर्माण कर वेदी प्रतिष्ठा की गई। इसके बाद सन् 2001 में आचार्य श्री एवं ससंघ का वर्षायोग सिद्धांत तीर्थ क्षेत्र पर हुआ। वर्षायोग के दौरान अनेको धार्मिक आयोजन अनुष्ठान द्वारा आचार्य श्री ने भक्तजनों को आध्यात्मिक पथ पर चलने की प्रेरणा दी। इसी अवधि में 108 धर्मानुरागियो द्वारा आचार्य बाहुबली आध्यात्मिक अनुसंधान ट्रस्ट का गठन किया गया। इसके पश्चात् परम पूज्य आचार्य रत्न 108 श्री बाहुबली जी महाराज की प्रेरणा से एवं समाज के पुण्य उदय से निर्माण कार्य एवं धार्मिक आयोजन होने लगे।
मंदिर जी का शिलान्यास सोमवार 15 अप्रैल 2002 को हुआ है। मंदिर जी में पंचबालयती तीर्थकरों के जिनमंदिर का पंचकल्याणक 22 जनवरी से 29 जनवरी 2004 में हुआ है। श्री 1008 भगवान बाहुबली भगवान जी की विशाल प्रतिमा, नवग्रह जिनालय, सहस्त्रकुट जिनालय जहाँ 1008 वेदियों में 1008 लोगों द्वारा प्रतिमाओं को प्रतिष्ठित कर विराजमान किया गया है। मंदिर जी के परिसर में ही जैन तीर्थंकर भगवान जी की चौबीसी बनी हुई है। मंदिर जी के गर्भगृह में मूलनायक प्रतिमा श्री 1008 पार्श्वनाथ भगवान जी की विराजमान है। वेदी में मूलनायक प्रतिमा के साथ अष्टधातु एवं पाषाण से निर्मित जैन प्रतिमाएँ विराजमान है। गर्भगृह में ही माता पद्मावती एवं रक्षक देव क्षेत्रपाल बाबा जी की वेदी विराजमान है। मंदिर जी के गर्भगृह के बाहर ॐ में पंच परमेष्ठी एवं ह्रीं में चौबीसी विराजमान है। मंदिर जी की एक वेदी में माता पद्मावती जी की तीन प्रतिमाएँ विराजमान है जो बहुत कम मंदिरों में देखने को मिलती है। मंदिर जी के परिसर में सप्तऋषि जिनालय का निर्माण किया गया है, जिसमे श्री जयवान ऋषिराज, श्री विनय लालस ऋषिराज, श्री जयमित्र ऋषिराज, श्री मन्यु ऋषिराज, श्री निश्चयराज जी, श्री सर्वसुन्दर ऋषिराज के साथ अन्य ऋषिराज जी की प्रतिमा विराजमान है। मंदिर जी के परिसर में ही जैन तीर्थंकरो की रत्नमयी चौबीसी वेदी भी विराजमान है। मंदिर जी के परिसर में ही पंचबालयती भगवान जी की ग्यारह फिट ऊँची जैन प्रतिमाएँ विराजमान है। सन् 2010 में आचार्य श्री बाहुबली जी महाराज के स्वर्गवास के बाद, उनकी स्मृति में समाधि स्थल का निर्माण जैन समाज द्वारा करवाया गया है। प्रतिदिन मंदिर जी में दूर-दूर के क्षेत्रों से लोग आकर दर्शन करते है।
प्रतिमाओं के चोरी होने की कहानी
मंदिर जी परिसर में एक बड़ा हॉल है जहाँ नवग्रह तीर्थंकरों की वेदिया को विराजमान किया गया है। इस हॉल के साथ ही 105 रत्नमयी प्रतिमाएँ गर्भगृह में स्थित है। गर्भगृह का प्रवेश द्वार हॉल में ही बना हुआ है। 2015 की बात है जब रात के समय कुछ चोर रत्नमयी प्रतिमाएँ चोरी करने के लिए मंदिर जी में प्रवेश करते है। वे हॉल का दरवाजा तोड़कर प्रवेश कर जाते है लेकिन रत्नमयी प्रतिमाओं के गर्भगृह में ताला लगा होता है जिसको तोड़ने में चोर असमर्थ होते है। गर्भगृह में प्रवेश करने के लिए वे द्वार के ऊपर लगे एग्जॉस्ट फैन से जाने का प्रयास करते है। उन्होंने पास ही में रखे मेज के ऊपर चढ़कर उस एग्जॉस्ट फैन को खोला और उसी स्थान से गर्भगृह में पहुँच गए। वे वेदी का शीशा तोडा और सभी प्रतिमाएँ चुरा कर ले गए। सुबह जब जैन समाज को पता चला तो उन्होंने इस बारे में पुलिस को सुचना दी और कुछ हफ्तों बाद ही पुलिस की सहयता से सभी प्रतिमाएँ राजस्थान के बॉर्डर से प्राप्त हो गई। लेकिन इनमें से कुछ प्रतिमाएँ चोरों ने तोड़ कर खंडित कर दी थी। जिस वजह से वर्तमान में मंदिर जी में केवल 84 रत्नमयी प्रतिमाएँ ही विराजमान है।
मंदिर जी में उपलब्ध सुविधाए
सिद्धान्त तीर्थ हरियाणा के जिला गुरुग्राम से मात्र चौदह किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। सिद्धान्त तीर्थ क्षेत्र का कुल क्षेत्रफल पाँच एकड़ से भी अधिक भूमि में विस्तृत है। मंदिर जी में दर्शन करने के लिए आने वाले श्रावकों एवं दूर के क्षेत्रों से आए यात्रियों के लिए सभी प्रकार की सुविधा का प्रबंध आचार्य बाहुबली आध्यात्मिक अनुसंधान ट्रस्ट (रजि.) द्वारा किया जाता है। समिति द्वारा निर्मित श्री आचार्य बाहुबली गऊशाला में गऊ माता की सेवा कर पुण्य अर्जित किया जाता है तथा बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं को भी इस सेवा का अवसर प्राप्त होता है। समिति द्वारा निर्मित श्री आचार्य बाहुबली औषधालय में कम शुल्क पर शुद्ध आयुर्वेदिक औषधियाँ उपलब्ध करवाई जाती है। परिसर में ही बाहर से आने वाले यात्रियों के रुकने की व्यवस्था के लिए यात्री निवास का निर्माण किया गया है। यात्री निवास में ऐ.सी. व नॉन ऐ.सी. कमरे उपलब्ध है। यात्रियों के लिए एक पुस्तकालय का निर्माण भी मंदिर जी के परिसर में किया गया है। मंदिर जी के साथ में ही आचार्य श्री बाहुबली गुरुकुल "छात्रावास" का निर्माण किया गया है जहाँ जैन छात्रों को निःशुल्क शिक्षा दी जाती है। मंदिर जी में जैन साधु महाराज जी के लिए रुकने की व्यवस्था के रूप में त्यागी भवन एवं विहार कक्ष का निर्माण किया गया है। साधु महाराज जी के प्रवचनो को सुनने के लिए एक विशाल हॉल का निर्माण किया गया है, जिसमें 500 लोग एक साथ बैठकर महाराज जी के प्रवचन को सुन सकते है।
क्षेत्र के बारे में
वर्तमान में गुरुग्राम हर प्रकार की सुविधाओं से युक्त एक इंडस्ट्रियल हब बन चुका है, जहाँ भिन्न-भिन्न समुदाय के लोग एक साथ रहते है। गुरुग्राम में लगभग सात सौ से आठ सौ जैन परिवारों का समाज है। क्षेत्र में कई जैन मंदिर स्थापित है, प्रत्येक मंदिर जी के लिए समिति का निर्माण किया गया है। गुरुग्राम या गुड़गाँव हरियाणा राज्य का एक नगर है जो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली से सटा हुआ है। यह फरीदाबाद के बाद हरियाणा का दूसरा सर्वाधिक जनसंख्या वाला नगर है। गुरुग्राम दिल्ली के प्रमुख सैटेलाइट नगरों में से एक है और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का हिस्सा है। चण्डीगढ़ और मुम्बई के बाद यह भारत का तीसरा सबसे ज्यादा पर-कैपिटा इनकम वाला नगर है। लोकमान्यता अनुसार महाभारत काल में इन्द्रप्रस्थ (वर्तमान दिल्ली) के राजा युधिष्ठिर ने यह ग्राम अपने गुरु द्रोणाचार्य को दिया था। उनके नाम पर ही इसे गुरुग्राम कहा जाने लगा, जो कालांतर में बदलकर गुड़गांव हो गया था। गुरुग्राम यह नगर राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली से 32 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
समिति
मंदिर जी के सुचारू संचालन हेतु श्री दिगम्बर जैन मंदिर समिति का निर्माण किया गया है। समिति में कार्यरत सदस्य इस प्रकार है -
अध्यक्ष - श्री राकेश जैन (ज्वाला परिवार)
महामंत्री -श्री रमेश चन्द जैन (जैकमपुरा)
सहमंत्री - श्री नमित जैन
कोषाध्यक्ष - श्री देवेंद्र जैन