मंदिर जी का परिचय

उत्तर-पूर्वी दिल्ली, शास्त्री नगर में स्थित श्री 1008 शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर, जैन धर्म की धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक धरोहर का एक अद्वितीय प्रतीक है। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि अपने ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व के कारण भी जैन समुदाय के बीच एक विशिष्ट स्थान रखता है। मंदिर जी शास्त्री नगर मेट्रो स्टेशन के निकट स्थित है, जो श्रद्धालुओं के लिए इसे अत्यंत सुलभ बनाता है। श्री 1008 शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर की स्थापना 1971 में एक छोटे चैताल्य के रूप में हुई थी, और इसका श्रेय उस समय के अध्यक्ष श्री केशोराम जैन जी को जाता है, जिन्होंने इस मंदिर को साकार करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके बाद, जैन समाज की एकजुट भावना और सामूहिक प्रयासों से 1984 में आचार्य श्री दर्शन सागर जी महाराज के सानिध्य में मंदिर का शिलान्यास हुआ। मंदिर का निर्माण जैन समाज के सम्पूर्ण सहयोग से हुआ है। 1993 में मोहनप्रिय उपाध्याय श्री आनंद सागर जी महाराज के सानिध्य में मंदिर में पंचकल्याणक का आयोजन किया गया, और उसी वर्ष एक भव्य महोत्सव का आयोजन हुआ, जिसने मंदिर की गरिमा को और भी बढ़ाया।
श्री 1008 शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर की वास्तुकला और संरचना इसकी भव्यता का उत्कृष्ट प्रतीक हैं। मंदिर के गर्भगृह में स्थित मुख्य वेदी पर श्री 1008 शांतिनाथ भगवान जी की मूलनायक प्रतिमा विराजमान है, जो शांतिनगर त्रिनगर से लाकर यहां स्थापित की गई थी। यह प्रतिमा अपनी अतिशयकारी गुणों के लिए प्रसिद्ध है, और श्रद्धालुओं का विश्वास है कि यहां सच्चे मन से की गई प्रार्थनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं। मंदिर की मुख्य वेदी में कुल 11 प्रतिमाएं स्थापित हैं, जिनमें भगवान महावीर और भगवान चन्द्रप्रभु की एक भव्य प्रतिमा विशेष रूप से श्रद्धालुओं का आकर्षण का केंद्र है। इसके अतिरिक्त, आठ छोटी प्रतिमाएं भी वेदी को सुसज्जित करती हैं, जिनमें श्री आदिनाथ भगवान जी, श्री पद्मप्रभु भगवान जी, श्री शांतिनाथ भगवान जी (दो प्रतिमाएं), श्री मुनिसुव्रतनाथ भगवान जी, श्री नेमिनाथ भगवान जी, और श्री पार्श्वनाथ भगवान जी की प्रतिमाएं शामिल हैं। मंदिर परिसर में गर्भगृह के बाहर एक छोटी वेदी भी स्थापित है, जिसमें पद्मावती माता जी की प्रतिमा विराजित है। यह वेदी श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, और यहां भक्तगण माता जी से अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति की प्रार्थना करते हैं।
मंदिर में प्रतिदिन पूजा, अभिषेक और शांतिधारा का आयोजन बड़े श्रद्धा और धूमधाम से किया जाता है। लगभग 15-20 अभिषेककर्ता प्रतिदिन मंदिर में आते हैं, और नियमित रूप से अभिषेक करते हैं, जो उनकी गहरी धार्मिक आस्था को दर्शाता है। मंदिर में एक विशेष रजिस्टर में श्रद्धालुओं के नाम दर्ज किए जाते हैं, जो पूजा-अर्चना और अभिषेक में भाग लेते हैं। इसके अतिरिक्त, मंदिर द्वारा एक और महत्वपूर्ण पहल की गई है, जिसके तहत बच्चों को धर्म और भक्ति के प्रति प्रेरित करने के उद्देश्य से एक विशेष रजिस्टर भी रखा गया है। भगवान शांतिनाथ जी का जन्मकल्याणक और भगवान महावीर जी के सभी प्रमुख पर्व मंदिर में बड़े उत्साह और भक्ति के साथ मनाए जाते हैं। इसके अलावा, जैन धर्म के प्रमुख पर्व भी यहां धूमधाम से मनाए जाते हैं। दशकल्याणक पर्व और वार्षिक शोभायात्रा जैसे आयोजन समुदाय में उल्लास और धार्मिकता का संचार करते हैं। मंदिर में प्रतिदिन लगभग 100-120 श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं, और आसपास रहने वाले 200-250 जैन परिवार इन धार्मिक आयोजनों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। अतिशयकारी प्रतिमाएं, नियमित पूजा-अर्चना और भव्य धार्मिक आयोजन श्री शांतिनाथ जी के इस मंदिर को विशिष्ट बनाते हैं। इस प्रकार, शास्त्री नगर में स्थित श्री 1008 शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर न केवल एक पूजा स्थल है, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक, सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों को संरक्षित करने वाला मंदिर भी है।
जैन समाज एवं सुविधाएं
मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं और मुनि महाराजों की सुविधा के लिए 100 गज क्षेत्र में एक भव्य अतिथि भवन का निर्माण किया गया है। यह भवन पूरी तरह से वातानुकूलित है और इसमें ठहरने के लिए सभी आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध हैं। यह भवन जैन समाज के धार्मिक कार्यों और यात्राओं के लिए ही नहीं, बल्कि अन्य सामाजिक कार्यों के लिए भी उपलब्ध कराया जाता है। मंदिर प्रबंधन द्वारा समय-समय पर विभिन्न सामाजिक कार्यों के आयोजन किए जाते हैं, जिनमें चिकित्सा और नैतिक शिक्षा से संबंधित शिविर प्रमुख हैं। वर्ष 2002 में, हेपेटाइटिस-बी के प्रति जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से एक चिकित्सा शिविर का आयोजन किया गया था। इसके अतिरिक्त, बच्चों के लिए नैतिक शिक्षा शिविरों का भी आयोजन किया जाता है, जहां उन्हें जैन धर्म और जीवन मूल्यों की शिक्षा दी जाती है। इस प्रकार, मंदिर समिति द्वारा आयोजित ये सामाजिक और शैक्षिक शिविर समुदाय में जागरूकता बढ़ाने और समाज की भलाई के लिए अहम योगदान प्रदान करते हैं।
दिल्ली क्षेत्र के बारे में
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली भारत की राजधानी और एक केंद्र शासित प्रदेश है। भारत की राजधानी होने के कारण केंद्र सरकार की तीनों इकाइयों- कार्यपालिका, संसद और न्यायपालिका के मुख्यालय दिल्ली में ही स्थापित हैं। यमुना नदी के किनारे स्थित इस नगर का गौरवशाली पौराणिक इतिहास है, और पुराणों में इसका विशेष महत्व है। यह भारत का अति प्राचीन नगर है। इसके इतिहास का प्रारम्भ सिन्धु घाटी सभ्यता से जुड़ा हुआ है। हरियाणा के आसपास के क्षेत्रों में हुई खुदाई से इस बात के प्रमाण मिले हैं। दिल्ली सल्तनत के उत्थान के साथ ही दिल्ली एक प्रमुख राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं वाणिज्यिक शहर के रूप में उभरी। यहाँ कई प्राचीन एवं मध्यकालीन इमारतों तथा उनके अवशेषों को देखा जा सकता हैं।
दिल्ली का प्राचीनतम उल्लेख महाभारत महापुराण में मिलता है जहाँ इसका उल्लेख प्राचीन इन्द्रप्रस्थ के रूप में किया गया है। इन्द्रप्रस्थ महाभारत काल में पांडवों की राजधानी थी। दिल्ली केवल भारत की राजधानी ही नहीं अपितु यह एक पर्यटन का मुख्य केन्द्र भी है। राजधानी होने के कारण भारत सरकार के अनेक कार्यालय, राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, केन्द्रीय सचिवालय आदि अनेक आधुनिक स्थापत्य के नमूने तो यहाँ देखे ही जा सकते हैं; प्राचीन नगर होने के कारण इसका ऐतिहासिक महत्त्व भी है। पुरातात्विक दृष्टि से पुराना किला, सफदरजंग का मकबरा, जंतर मंतर, कुतुब मीनार और लौह स्तंभ जैसे अनेक विश्व प्रसिद्ध निर्माण यहाँ पर आकर्षण का केन्द्र समझे जाते हैं। लगभग सभी धर्मों के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल यहाँ हैं जैसे बिरला मंदिर, कात्यायिनी शक्तिपीठ, लाल जैन मंदिर, बंगला साहब गुरुद्वारा, बहाई मंदिर, अक्षर धाम मंदिर और जामा मस्जिद देश के शहीदों का स्मारक इंडिया गेट, राजपथ पर इसी शहर में निर्मित किया गया है। वर्तमान समय में दिल्ली सम्पूर्ण भारत के व्यापार का मुख्य केंद्र बन चुका है।
समिति
मंदिर की प्रबंधन समिति में 21 पद हैं, जिनमें 7 अधीक्षक और 14 सदस्य शामिल हैं। समिति का उद्देश्य मंदिर के धार्मिक और सामाजिक कार्यों को सुचारू रूप से संचालित करना है। वर्तमान में समिति के पदाधिकारी इस प्रकार हैं:
अध्यक्ष - श्री संजय कुमार जैन जी