पार्श्वनाथ जैन मंदिर सिरसा
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एक दृष्टि में

  • नाम
    श्री 1008 पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर, सिरसा
  • निर्माण वर्ष
    मंदिर जी का निर्माण सन् 1954 में हुआ
  • स्थान
    नेशनल हाईवे 9, आर्य समाज रोड, सिरसा, हरियाणा
  • मंदिर समय सारिणी
    सुबह 6 बजे से रात्रि 8 बजे तक
मंदिर जी का परिचय
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श्री 1008 पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर हरियाणा राज्य के जिला सिरसा में नेशनल हाईवे 9 के पास स्थित है तथा पुरे सिरसा का एकमात्र दिगम्बर जैन मंदिर है। मंदिर जी का निर्माण 1954 में किया गया है। मंदिर जी का संचालन स्थानीय जैन समाज द्वारा किया जाता है। मंदिर जी के निर्माण से पूर्व क्षेत्र पर अन्य कोई दिगम्बर जैन मंदिर नहीं था। क्षेत्र में मंदिर जी से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर स्थानीय जैन निवासी श्री कुलभूषण सरावगी जी के घर में ही पूर्वजो के समय का निर्मित चैत्यालय हुआ करता था। लोगो को दर्शन करने चैत्यालय में ही जाना पड़ता था, लेकिन क्षेत्रफल कम होने के कारण स्थानीय जैन समाज एवं श्री कुलभूषण जी की सहमति से मंदिर जी के निर्माण करने का निर्णय लिया जाता है। सिरसा के समस्त जैन समाज द्वारा मिलकर भूमि का चुनाव करके मंदिर जी का निर्माण किया गया। मंदिर जी का निर्माण हो जाने के पश्चात चैत्यालय में विराजित प्रतिमाओं को वर्तमान मंदिर जी में विराजमान किया गया। सन् 1954 में क्षेत्र पर श्री 108 ज्ञानभूषण जी महाराज का आगमन हुआ, उन्ही के सानिध्य में मंदिर जी में प्रथम पंचकल्याणक किया गया। मंदिर जी की मूल वेदी में मूलनायक प्रतिमा श्री 1008 पार्श्वनाथ भगवान जी की है तथा उनके साथ ही श्री 1008 आदिनाथ भगवान, श्री 1008 महावीर भगवान एवं अन्य अष्टधातु से निर्मित कुछ प्रतिमाएँ विराजमान है। अष्ट धातु की इन प्रतिमाओं को चैत्यालय से लाकर मंदिर जी की वेदी में विराजमान किया गया है, जो देखने से प्राचीन प्रतीत होती है। बताया जाता है कि इन प्रतिमाओं को प्राचीन सिरसा के भूगर्भ से प्राप्त किया गया था तथा ये प्रतिमाएँ 1400 वर्ष प्राचीन है। मंदिर जी में मूल वेदी के साथ में ही माता पद्मावती एवं धरणेन्द्र देव जी की प्रतिमा को भी अलग वेदी में विराजित किया गया है। मंदिर जी में प्रतिदिन सुचारु रूप से जैन समाज के लोग आकर पूजा-प्रक्षाल एवं शांतिधारा करते है।


कथा अतिशय की

सन् 1954 में सिरसा की भूमि पर श्री 108 ज्ञानभूषण जी महाराज का आगमन हुआ था। जैसा की दिगम्बर साधु-महाराज दिगम्बर अवस्था में रहते है, उनकी दिगम्बर अवस्था को लेकर स्थानीय समाज का एक व्यक्ति उनका मजाक बनाकर हँस रहा था। तभी एक अतिशय हुआ, उस व्यक्ति की नेत्र ज्योति चली गई तथा उसे दिखना बंद हो गया। अपनी भूल का पश्चाताप करते हुए वह महाराज जी से माफी मांगने लगा, उस व्यक्ति ने यह प्रण लिया कि वे आज के बाद कभी ऐसा नहीं करेगा। एक बार फिर अतिशय हुआ तथा इस बार उस व्यक्ति की नेत्र ज्योति दोबारा वापिस लौट आई। स्थानीय समाज द्वारा बताया जाता है कि मंदिर जी में सच्चे मन से प्रार्थना करने पर वह प्रार्थना अवश्य पूर्ण होती है। मंदिर जी में प्रतिदिन एक महिला आकर माता पद्मावती जी के आगे पूजा अर्चना करती थी। कुछ समय पश्चात उस महिला को जज की उपाधि मिल गई। उस महिला द्वारा बताया जाता है कि मुझे यह उम्मीद नहीं थी की मुझे जज की नौकरी मिल जाएगी तथा यह भगवान का ही अतिशय है।


जैन समाज एवं सुविधाए

सिरसा में बीस से पच्चीस दिगम्बर जैन परिवारों का समाज है। दिगम्बर जैन समाज केवल बीस से पच्चीस परिवारों का होने के बावजूद तथा सिरसा का एक मात्र दिगम्बर जैन मंदिर होने के कारण मंदिर जी में दूर-दूर के क्षेत्रों से श्रद्धालुओं का आना होता रहता है। राष्ट्र के वीरों में सुमार भारतीय वायु सेना के अधिकारी श्री अभिनन्दन वर्धमान जी के माता-पिता का आगमन मंदिर जी में हुआ था। साथ ही सोशल मिडिया के मोटिवेशनल स्पीकर श्री हर्षवर्धन जैन जी का भी आगमन मंदिर जी में हुआ है। सिरसा में दिगम्बर एवं श्वेताम्बर दोनों जैन समाज द्वारा मिलकर एक दूसरे के कार्यों में हाथ बटाया जाता है। सिरसा में केवल एक ही दिगम्बर जैन मंदिर है, जिसका संचालन सुचारु रूप से जैन समाज द्वारा किया जाता है। यदि कोई यात्री किसी अन्य क्षेत्र से मंदिर जी में दर्शन हेतु आता है तो उनके रुकने की व्यवस्था सिरसा में ही स्थित श्वेताम्बर धर्मशाला में की जाती है।


क्षेत्र के बारे में

सिरसा हरियाणा राज्य के दक्षिण में बसा हुआ जिला है, यह राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले से गिरा हुआ और एक तरफ पंजाब से लगा हुआ है। सिरसा नगर का इतिहास प्राचीन एवं गौरवपूर्ण है। सिरसा का प्राचीन नाम सिरशुति व कुछ स्थानों पर शिरीषका लिखा पाया जाता है। ऋषि पाणिनी की अष्टाध्यायी में भी शीरीषका का वर्णन है। धीरे-धीरे इसका नाम सिरसा प्रचलित हो गया। सिरसा को वन नगरी, सारस नगरी और संतो की नगरी के नाम भी जाना जाता था। वर्तमान में क्षेत्रफल के मामले में सिरसा हरियाणा का सबसे बड़ा जिला भी बन गया है। सिरसा का आध्यात्मिकता से अटूट संबंध है। अनेक संत-फकीरों की यह धरती चारो ओर से आध्यात्मिकता का शीतल प्रवाह समेटे हैं। हजारों साल पहले अपने वनवास काल के समय पांचों पांडवों में से नकुल व सहदेव ने यहां वनवास काटा था। सिरसा और उसके आसपास का क्षेत्र, समृद्ध ऐतिहासिक और सांस्‍कृतिक विरासत का स्‍वर्ग है। इसकी खोज, भारत के पुरातत्‍व सर्वे द्वारा घग्घर नदी के करीब 54 स्‍थलों पर खुदाई के बाद की गई। यह खोज, 1967 और 1968 में की गई थी। इस खोज में रंग महल संस्‍कृति की कई रंगों और कई डिजायन के ढ़ेर सारे बर्तन, कटोरे आदि प्राप्‍त हुए है। सन् 1789 में प्राकृतिक प्रकोपवश मूल सिरसा नगर जो कि वर्तमान नगर के दक्षिण-पश्चिम में स्थित था, खण्डहरात में परिवर्तित हो गया। लगभग पांच दशक पूर्व तक सिरसा शुष्क धूलभरी काली-पीली आंधियों का अद्र्धमरूभूमि क्षेत्र था। अत: सिरसा के विकास की कहानी इस रेगिस्तानी शुष्कता से हरियाली की कहानी कही जा सकती है। भाखड़ा डैम परियोजना के बाद इस रेगिस्तानी क्षेत्र के लहलहाते खेत, बाग-बगीचे तथा बिजली में नहाते गांव जिले के विकास की कहानी दोहराते हैं।


समिति

मंदिर जी के सुचारु रूप से संचालन हेतु मंदिर समिति का निर्माण किया गया है। मंदिर जी की समिति में कार्यरत सदस्य इस प्रकार है -

प्रधान - श्री कुलभूषण जैन

सचिव - श्री संजीव जैन

सदस्य - श्री संदीप जैन


नक्शा