झज्जर श्री पद्मप्रभु जैन मंदिर
-jhajjar-mandir-.jpg

एक दृष्टि में

  • नाम
    श्री 1008 पद्मप्रभु दिगम्बर जैन मंदिर, चोपता बाजार रोड
  • निर्माण वर्ष
    मंदिर जी का गर्भगृह लगभग 1000 वर्ष प्राचीन है
  • स्थान
    चोपता बाजार रोड, झज्जर, हरियाणा
  • मंदिर समय सारिणी
    सुबह 6 बजे से रात्रि 8 बजे तक
मंदिर जी का परिचय
-jhajjar-mandir-.jpg

श्री 1008 पद्मप्रभु दिगम्बर जैन मंदिर झज्जर के चोपता बाजार रोड पर स्थित है। मंदिर जी का निर्माण आज से हजार वर्ष पूर्व किया गया था। समय के साथ मंदिर जी में निर्माण कार्य स्थानीय जैन समाज द्वारा किया गया है। पहले मंदिर जी का स्थान पीछे की ओर एक चैत्यालय के रूप में था। बाद में श्रावकों की बढ़ती जनसँख्या के कारण जैन समाज द्वारा चैत्यालय को मंदिर जी का रूप दे दिया गया।

मंदिर जी में वर्ष 2014 में ब्रह्मचारी स्व. श्री राजेश जैन जी के सानिध्य में लघु पंचकल्याणक हुआ है। सन् 2014 में शिखर निर्माण करके चैत्यालय को मंदिर जी का रूप दे दिया गया। मंदिर जी में मूलतः एक वेदी है जिसमें मूलनायक श्री 1008 पद्मप्रभु भगवान जी की प्राचीन प्रतिमा विराजमान है। मूलनायक प्रतिमा के साथ श्री पार्श्वनाथ भगवान की तीन प्रतिमाएँ, चौबीसी प्रतिमा एवं अन्य जैन प्रतिमाएँ विराजमान है। वेदी में मूलनायक प्रतिमा के दाई ओर विराजित श्री पार्श्वनाथ भगवान जी की प्रतिमा देखने से ही अति प्राचीन प्रतीत होती है। बताया जाता है कि यह प्रतिमा झाड़ली गाँव में किसान को खुदाई के दौरान प्राप्त हुई थी। श्री पार्श्वनाथ भगवान जी की यह प्रतिमा बहुत ही अतिशयकारी है। मंदिर जी में वर्ष 1978 को जैन मुनि श्री 108 कीर्ति सागर जी महाराज का चातुर्मास हुआ। उपरांत वर्ष 1997 में आचार्य श्री 108 सौरभ सागर जी महाराज का भी आगमन क्षेत्र पर हुआ है। प्रतिदिन मंदिर जी में श्रद्धालु आकर पूजा प्रक्षाल एवं जलाभिषेक करते है।


कथा अतिशय की

प्रतिमाओं का चोरी हो जाना- मंदिर निर्माण से पूर्व जब चैत्यालय हुआ करता था, तब वेदी में मूलनायक श्री पद्मप्रभु भगवान, श्री महावीर भगवान एवं श्री पार्श्वनाथ भगवान जी की प्रतिमा हुआ करती थी। वर्ष 1983 में मंदिर जी में से सभी प्रतिमाएँ चोरी हो जाती है। जब चोर प्रतिमाओं को बेचने लगते है तो जैन समाज का व्यक्ति प्रतिमाओं को देखकर समझ जाता है कि ये वही प्रतिमाएँ है जो मंदिर जी से चोरी हो गई थी। वह व्यक्ति जैन समाज को प्रतिमाओं के बारे में सुचना दे देता है, बाद में पुलिस विभाग के द्वारा प्रतिमाएँ चोरों से लेकर जैन समाज को वापिस दे दी जाती है।

2010 में दुबारा फिर से मंदिर जी में से प्रतिमाएँ चोरी हो गई थी। चोर मंदिर जी की छत से गर्भगृह में प्रवेश करते है। वेदी पर शुद्धिकरण की दृष्टि से चारों ओर काँच का कक्ष बना हुआ था। जब चोर काँच के कक्ष को तोड़ रहा था, तो उसका हाथ साथ में कट गया। पूरी वेदी में खून लग जाता है लेकिन फिर भी चोर प्रतिमाओं को लेकर भाग जाते है। प्रतिमाओं के चोरी होने की यह अशुभ सुचना सुनकर पुरे जैन समाज में अशांति का वातावरण बन जाता है। वेदी सुनी न रहे इसलिए जैन समाज द्वारा अन्य प्रतिमाओं को लाकर वेदी में स्थापित किया जाता है। कई दिनों बाद पुलिस द्वारा जैन समाज को सुचना दी जाती है कि चोरों ने प्रतिमाओं को स्वयं पुलिस को सौंप दिया है, इसका कारण उन्हें प्रतिमाओं का उचित मूल्य का न मिलना बताया जाता है। पुलिस द्वारा प्रतिमाओं को फिर से जैन समाज को सौंप दिया जाता है तथा जैन समाज सभी प्रतिमाओं को फिर से वेदी में स्थापित कर देता है। यह भी एक अतिशय ही था कि दो बार प्रतिमाएँ चोरी हो जाने पर भी प्रतिमाएँ फिर से मंदिर जी में वापिस लौट आई।

छत का गिर जाना- सन् 2014 में चैत्यालय में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा के समय पूजा विधान चल रहा था। चैत्यालय की छत काफी पुराणी होने के कारण गिरने का खतरा बना हुआ था। लगभग सात से आठ लोग छत के निचे बैठे हुए थे। पूजा संपन्न होने के बाद जैसे ही सभी उठकर आगे की ओर बढ़े पूरी छत नीचे गिर जाती है, लेकिन सौभाग्य वस सभी सुरक्षित बच जाते है।


जैन समाज एवं सुविधाए

झज्जर में एक समय चालीस से अधिक जैन परिवार हुआ करते थे, लेकिन आज जैन समाज दस से बारह परिवारों का रह गया है। कम जनसंख्या होने के बावजूद भी जैन समाज द्वारा क्षेत्र में हर गतिविधि में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया जाता है। जैन समाज द्वारा निर्मित श्री जैन महावीर हाई स्कूल में जैन के साथ अजैन बच्चों को भी शिक्षा दी जाती है। जैन मंदिरों में दूर के क्षेत्रों से दर्शन करने आए यात्रियों के लिए रुकने की व्यवस्था भी उपलब्ध करवाई जाती है। सम्पर्क करके आने पर भोजन की व्यवस्था भी उपलब्ध करवाई जाती है। क्षेत्र में जैन साधु महाराज जी के आगमन पर त्यागी भवन में रुकने की व्यवस्था की जाती है।


क्षेत्र के बारे में

झज्जर भारत के हरियाणा राज्य में स्थित है। झज्जर दिल्ली से लगभग 65 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। झज्जर की स्थापना छज्जु नाम के एक किसान ने की थी। पहले इसका नाम 'छज्जु नगर' था लेकिन बाद में यह झज्जर हो गया। इसके अलावा यहां की झज्ज्री (सुराही) बहुत मशहूर थी तो भी इसका नाम झज्जर पड़ा। झज्जर के दो मुख्य शहर बहादुरगढ़ और बेरी है। बहादुरगढ़ की स्थापना राठी जाटों ने की थी। पहले बहादुरगढ़ को सर्राफाबाद के नाम से जाना जाता था।


समिति

झज्जर में जैन परिवारों की संख्या कम होने के बावजूद भी मंदिर जी का संचालन सुचारु रूप से होता है। मंदिर संचालन में कार्यरत सदस्य इस प्रकार है -

प्रधान - श्री विपिन जैन जी

कोषाध्यक्ष - श्री दीपक जैन जी


नक्शा