मंदिर जी का परिचय

श्री दिगम्बर जैन पंचायती मंदिर, हांसी यहाँ पर विख्यात अतिशय क्षेत्र ‘पुण्योदय तीर्थ’ से लगभग 3 किलोमीटर, हरियाणा राज्य में जिला हिसार से लगभग 25 किलोमीटर और दिल्ली से लगभग 110 कि०मी० की दूरी पर स्थित है। मंदिर जी का निर्माण सन् 1820 से लेकर 1825 के मध्य में बताया जाता है। लेकिन सन् 2014 में यहाँ पर मुनि श्री विशोक सागर जी महाराज आए और उन्होंने मंदिर जी की दशा देखकर आदेश दिया की इस मंदिर जी का जीर्णोद्धार जल्द से जल्द होना चाहिए, अन्यथा यह मंदिर कभी भी ध्वस्त हो सकता है। तब हांसी जैन समाज ने मिलकर व प्रधान सूरज भान जैन और श्री अजित जैन जी ने अपनी पूरी भूमिका निभाते हुए मंदिर का निर्माण कार्य पुनः करवाया। मंदिर जी का जब निर्माण कार्य प्रगति पर था। उस समय भू-गर्भ से दो प्रतिमाएँ एवं एक चरण पादुका प्रकट हुई थी। दोनों प्रतिमाओं एवं चरण पादुका को मंदिर जी में स्थापित किया गया। चरण पादुक पर कुछ लिखा हुआ प्रतीत होता है लेकिन आज तक स्पष्टता के साथ उसको कोई भी पढ़ नहीं सका हैं।
मंदिर जी में कुल तीन वेदियां हैं, दो नीचे तल पर और एक ऊपरी तल पर निर्मित है। मंदिर जी में प्रवेश करते ही दाई ओर आपको एक अति मनमोहक वेदी दिखाई देगी। जिसमें हांसी में असीगढ़ किले से प्राप्त हुई 57 प्रतिमाओं को विराजमान किया गया है। पुण्योदय तीर्थ निर्माण के दौरान इनमें से पाँच प्रतिमाओं को वहाँ पर विराजमान कर दिया गया था। वेदी में मूल प्रतिमा श्री 1008 पार्श्वनाथ भगवान जी की है। मंदिर जी के भीतर दूसरी वेदी अतः मूल वेदी भी श्री 1008 पार्श्वनाथ भगवान जी की है। ऊपरी तल पर वेदी में श्री 1008 महावीर भगवान जी की मूल प्रतिमा विराजमान है, उनके साथ अन्य प्रतिमाएँ भी विराजमान हैं। सभी वेदियो में आप देखेंगे कि बहुत सुंदर स्वर्ण की चित्रकारी की गई है। जो देखने में बहुत ही मनमोहक लगती है। इसी के साथ आपको बहुत ही सुंदर कलाकृतियां, इस भवन में देखने को मिलेगी। मंदिर जी में 24 तीर्थंकर भगवान के सभी चिन्हों को बड़ी ही सुंदर तरीके से चित्रकारी के रूप में दिखाया गया है। सन् 2008 में मुनि श्री विशोक सागर जी महाराज साथ ही उनके संघ के छुल्लक श्री विरंजन सागर जी महाराज का चातुर्मास हुआ। आर्यिका दृढ़मति माता जी एवं उनका का पूरा संघ जिसमें 18 आर्यिकाएँ है उनका भी चातुर्मास मंदिर जी में हुआ है।
मंदिर जी का अतिशय
जब मंदिर जी का जीर्णोद्धार का कार्य चल रहा था। तब मंदिर जी के भूगर्भ से दो प्रतिमाएँ एवं एक चरण पादुका प्रकट हुई थी। जब यह प्रतिमाएँ मिली तो मंदिर जी के साथ ही जैन धर्मशाला है। मुनि श्री विशोक सागर जी महाराज और छूल्लक श्री कुलभूषण महाराज जी ने धर्मशाला के एक कमरे में उन दोनों प्रतिमाओं को एक तखत पर विराजमान करवाया और कमरे का ताला लगाया गया। कमरे में जाने का मार्ग केवल एक ही था जो बाहर कमरे के दरवाजे से ताला हटाने पर था। बाहर से यदि कोई कमरे में जाता तो सबको पता चल जाता। अगले दिन छूल्लक श्री कुलभूषण महाराज जी के सामने ही वह दरवाजा खोला गया। लेकिन दरवाजा खुलते ही उनको बड़ी मनमोहक सुगंध आई। सब ने कहा ऐसी मनमोहक सुगंध किसी आम इत्र की नहीं हो सकती। जब वे कमरे के अंदर गए तो उन्होंने देखा वहाँ पर दूध की कुछ बंदे भी पड़ी हुई थी। ऐसा लग रहा था मानों किसी ने अभी प्रतिमाओं का दूध से अभिषेक किया हो। कोई आम व्यक्ति बिना ताला खोले कमरे में नहीं जा सकता था अन्तः इस वाक्य उपरांत ऐसा माना जाता है कि यह भगवान का अतिशय ही है जो प्रतिमाओं का अभिषेक खुद देवताओं द्वारा किया गया था।
57 प्रतिमाओं की प्रगट होने की कहानी

यह बात 19 जनवरी 1982 की है, किले पर कुछ बच्चे गुल्ली डंडा खेल रहे थे, खेलते हुए एक बच्चे ने टोरा मारा तो गुल्ली हवा में उड़ते हुए एक खाई में जा गिरी। जो बच्चा खाई के किनारे खड़ा था वह बच्चा गुल्ली निकलने के लिए खाई में उत्तर गया और उसने देखा कि उसकी गुल्ली किसी एक टोकरे जैसी चीज पर पड़ी है जो मिट्टी में दबा है। उसने अपने सभी साथियों को बुलाया और सभी साथी हाथों से मिट्टी हटाने लगे, तो टोकरे का मुँह नजर आया। वह टोकरा बहुत बड़ा कलश था और मिट्टी में धसा हुआ था। बच्चों ने अपने घरवालों को बुलाकर घटना का व्यख्यान किया। लोगों ने कस्सी से ही कलश पर लगे ताले को तोड़ दिया, जब कलश का मुँह खोला तो देखा इस में बहुत सारी प्रतिमाएँ हैं।
कलश में कुल 57 प्रतिमाएँ प्राप्त हुई जिसमें 40 बड़े आकार की व 17 छोटे आकार की प्रतिमाएँ थी जिसमें से 19 प्रतिमाएँ भगवान पार्श्वनाथ जी की अति सुन्दर एवं मनोहारी हैं। प्रतिमाओं को देख उनके मन में लालसा उत्पन हुई की ये बहुत ही प्राचीन प्रतिमाएँ है और बहुत महंगी होगी। यह सोचकर वह सारी प्रतिमाएँ अपने घर ले जाते हैं। अगले ही दिन प्रतिमाओं के बंटवारे को लेकर उनकी लड़ाई हो जाती है। यह देख वहाँ पर पुलिस आ जाती है और पुलिस वह सारी प्रतिमाएँ अपने साथ पुलिस स्टेशन ले जाती है। जब प्रतिमाएँ पुलिस स्टेशन पहुँची तब जाकर जैन समाज को पता चला कि किले से जैन प्रतिमाएँ निकली है। तभी जैन समाज एकत्रित हुआ। जैन समाज के आग्रह पर पुलिस द्वारा सभी प्रतिमाओं को एक दिन के लिए पंचायती मंदिर जी में विराजमान किया गया। जिसके दर्शन के लिए दूर दूर से श्रावक एकत्रित हुए। एक दिन बाद ही यहाँ से सारी प्रतिमाएँ पुरातत्व विभाग के पास चली गई। कई प्रयासों के बाद भी प्रतिमाएँ जैन समाज को नहीं मिलपाई।
10 साल तक इन प्रतिमाओं को सरकार द्वारा संग्रहित करके रखा गया। लेकिन जैन समाज द्वारा व स्थानीय दिगम्बर जैन के अथक प्रयास एवं जैन श्रमण संस्कृति के उन्नायक दिगम्बर जैन आचार्य परम पूज्य श्री 108 धर्मभूषण जी महाराज, पूज्य कुलभुषण छुल्लक जी महाराज एवं अन्य संतों के लगभग 10 साल के प्रयत्न के बाद प्रतिमाओं को आखिरकार सरकार द्वारा वापिस जैन समाज को लौटा दिया गया। छुल्लक कुलभूषण जी जो बाद में जैन मुनि बन गए उनका भाव था कि जैन समाज को यह सभी प्रतिमाएँ वापस मिल जाए। उन्होंने कहा जब तक यह प्रतिमाएँ जैन समाज को नहीं मिल जाती। तब तक वह मीठे और नमक का त्याग करेंगे। 10 साल की कठिन तपस्या और प्रयास के बाद दिसंबर 1991 में सभी प्रतिमाएँ जैन समाज को सौंप दी गई। जिसमें से पाँच प्रतिमाएँ पुण्योदय तीर्थ हांसी में एवं बाकी सभी प्रतिमाएँ पंचायती दिगम्बर जैन मंदिर में सुरक्षित रूप से विराजमान किया गया है।
प्रतिमाओं का चोरी हो जाना
इतने संघर्षो के बाद प्रतिमाएँ जैन समाज को मिल गयी, प्रतिमाओं को हांसी के पंचायती मंदिर जी में स्थापित किया गया। मंदिर जी बहुत प्राचीन बना होने के कारण यहाँ सुरक्षा को लेकर कोई उचित प्रबंध नहीं थे। समय के साथ अन्य लोगों में चर्चा होने लगी की क्षेत्र पर विराजमान प्रत्येक प्रतिमा एक करोड़ की है। अतः 57 प्रतिमाएँ 57 करोड़ की। यह बात कुछ लुटेरों को पता चली और उन्होंने मंदिर जी से इन प्रतिमाओं को चोरी करने का सोचा। सन् 2004 में इस घटना को अंजाम दिया गया। लुटेरों ने प्रतिमाओं को चुराने के लिए मंदिर जी की छत तोड़कर मंदिर में प्रवेश कर सारी प्रतिमाओं को चुरा लिया। यह सुचना जब एस.पी. सौरभ सिंह जी तक पहुँची जो उस समय के एस.पी. होते थे। उन्होंने इस घटना के बारे में तहकीकात की और एक महीने के अंदर ही चोरों का पता लगाकर प्रतिमाओं को जब्त किया। चोरों द्वारा कुछ प्रतिमाएँ हिसार के महावीर नामक पानी की टंकी में एवं कुछ प्रतिमाएँ भिवानी के पुलिस स्टेशन के सामने चाय वाले की दुकान में छिपा दी थी। इस तरह जैन समाज को वापिस प्रतिमाएँ मिली। प्रतिमाओं के मिलने के उपरांत ही पुण्योदय तीर्थ का निर्माण कार्य शुरू हो गया था जहाँ पर पाँच प्रतिमाओं को विराजमान किया गया।
दिव्य संकेत
एक वाक्य अनुसार बताया जाता है एक व्यक्ति रोजाना किले पर टहलने के लिए जाया करता था। उस व्यक्ति को कई बार काले रंग का सर्प दिखाई देता था। जो लगभग 5 फूट लम्बा और काफी मोटा था। वह सर्प एक जगह से निकलता और उस स्थान पर जाकर अदृश्य हो जाता जहाँ से 19 जनवरी 1982 को प्रतिमाएँ मिली थी। ऐसी घटना उनके साथ कई बार हो चुकी थी। लेकिन उन्होंने कभी इस पर विशेष ध्यान नहीं दिया। बाद में प्रतिमाओं के प्राप्त होने पर उन्हें पता चला की यह एक संकेत था जो कि खुद भगवान द्वारा सर्प के माध्यम से दिया जा रहा था।
समाज एवं सुविधाएं

हांसी में करीब 60-65 जैन परिवार है। प्रतिदिन भक्तजन अधिक संख्या में मंदिर जी में आकर देव दर्शन का लाभ उठाते है। सन् 1953 में धर्मशाला का निर्माण हुआ था। श्री दिगम्बर जैन धर्मशाला हांसी चोपता बाजार में स्थित है। धर्मशाला का मुख्य द्वार किला बाजार में स्थित है तथा धर्मशाला का पिछला द्वार जैन गली में श्री 1008 दिगम्बर जैन पंचायती मंदिर जी के साथ में है। धर्मशाला में बाहर से आने वाले यात्रियों के लिए उचित व्यवस्था बनाई गई है। धर्मशाला में 10 कमरों का एक ब्लॉक है। जिसमें सभी कमरों में ए.सी. की व्यवस्था है और साथ में अटैच बाथरूम है। धर्मशाला में एक रसोईघर की व्यवस्था भी है। आप अपना भोजन स्वयं भी बना सकते है। धर्मशाला में अन्य कमरे कूलर सुविधा के साथ उपलब्ध है। धर्मशाला में दो ए.सी. हॉल है। जिनका प्रयोग किसी सामाजिक कार्य के लिए किया जाता है।
हांसी क्षेत्र के बारे में
हांसी का इतिहास बहुत ही प्राचीन है। हांसी किले के अंदर तलवार बनाने का बहुत बड़ा कारखाना हुआ करता था। यहाँ की बनी हुई तलवारे पूरे इलाके में मशहूर थी। फारसी में तलवार को आसी बोलते हैं। इसलिए इसका नाम असीगढ़ पड़ गया। जो बाद में बिगड़ते- बिगड़ते हांसी रह गया। तोमर वंशीय शासकों ने यहाँ 1153 ई. तक राज किया। बाद में इतिहास प्रसिद्ध सम्राट पृथ्वीराज चौहान के पूर्वज शाकुम्भरी के चौहान नरेश विसलदेव ने हांसी क्षेत्र जीतकर राज किया। चौहान काल में जैन धर्म यहाँ का राज धर्म बना। उस काल खण्ड में हांसी में भगवान पार्श्वनाथ जी के साथ अन्य भव्य जैन मंदिर थे। सन् 1893 ई. में गांव मसुदपुर में अंगूठी के आकार के तांबे के सिक्के मिले थे जो मोहम्मदशाह व गयासुद्दीन के काल के थे। हांसी से राष्ट्रीय राजमार्ग 9 गुज़रता है, जो इसे पूर्व में रोहतक व दिल्ली और दूसरी ओर हिसार, फतेहाबाद व सिरसा से जोड़ता है। हांसी से राष्ट्रीय राजमार्ग 148बी बरवाला, टोहाना, जाखल, बुढलाडा, मानसा, भीखी व बठिंडा से जोड़ता है।
मंदिर समिति
हांसी में करीब 60 जैन परिवार है। प्रतिदिन भक्तजन अधिक सँख्या मंदिर में आकर देव दर्शन का लाभ उठाते है। जैन समाज द्वारा गुप्त रूप से सामाजिक कार्यो में योगदान दिया जाता रहा है। वर्तमान समिति के सदस्य इस प्रकार है -
प्रधान - श्री अजीत जैन
उप प्रधान - श्री सुभाष जैन जी
सचिव - श्री राजेश जैन