मंदिर जी का परिचय

सोनीपत से 13 किलोमीटर दूरी पर स्थित है दिगम्बर जैन मंदिर जो भटगॉंव में निर्मित है। दिल्ली से भटगॉंव 56 किलोमीटर पड़ता है। आज से 176 वर्ष पूर्व भटगांव में लाला हुकमचन्द जैन कानूनगो (हाँसी वाले), अंग्रेजी सरकार के द्वारा जैलदार भटगांव मे नियुक्त किए गए। वे सच्चे जैन श्रावक थे। उनका ये नियम था कि बिना देव-दर्शन किए वे जीवन में कोई भी दैनिक कार्य नहीं करते थे। इस गांव के आसपास कोई जैन मन्दिर नहीं था अतः उनको प्रतिदिन देव-दर्शन के लिए भटगांव से सोनीपत 13 कि. मी. घोड़ी की सवारी से आना जाना पड़ता था। उपरांत उन्ही की प्रेरणा से इस मन्दिर का निर्माण हुआ था।
मंदिर जी में मूलतः दो वेदीया स्थापित है। मंदिर जी की मूलनायक प्रतिमा श्री 1008 चन्द्रप्रभु भगवान जी की है। जो अति प्राचीन बताई जाती है। यह प्राचीन प्रतिमा मद्रास में प्रतिष्ठित हुई थी। प्रतिमा पर उत्कृष्ट वीर सम्वत: 1542 पढ़ने से ऐसा प्रतीत होता है कि यह प्रतिमा ग्यारहवीं शताब्दी की है। कहा जाता है की तिजारा जी की अतिश्यकारी चन्द्रप्रभु भगवान जी की प्रतिमा जो भूगर्भ से निकली है ऐसी ही प्रतिमा भटगांव मन्दिर जी में चन्द्रप्रभु भगवान जी की देखने को मिलती है। साथ ही ऐसा मानना है की यह दोनों प्रतिमाएँ एक ही शिल्पकार द्वारा निर्मित की हुई है। दोनो ही प्रतिमाओं का अतिश्य महान है। वेदी में मूलनायक प्रतिमा के साथ श्री 1008 शान्तिनाथ भगवान जी एवं श्री 1008 शीतलनाथ भगवान जी विराजमान है। भटगांव मन्दिर जी का पुन: जीर्णोद्धार वर्ष 1975 में हुआ था। वर्ष 1975 को दूसरी वेदी में श्री 1008 पार्श्वनाथ भगवान जी की प्रतिमा विराजमान की गई। श्री 1008 पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा चमकीले और काले पत्थर से निर्मित है, यह भी अतिश्य प्रभाव वाली है। वेदी में पार्श्वनाथ भगवान जी की प्रतिमा के साथ श्री महावीर भगवान एवं श्री अरहनाथ भगवान जी की प्रतिमा भी विराजमान है। पुरे गर्भगृह में जैन चित्रकारी को बहुत सुन्दर तरीके से उकेरा गया है।
जीर्णोद्धार के समय वेदी पर पत्थर लगवाने के लिए समाज के मुख्य आदमी (प्रधान लाला छजजू राम जैन अरजनबीस, सचिव श्री पृथ्वी चन्द जैन, लाला जीतर राम जैन, लाला रूपचन्द जैन, लाला चन्द्रभान जैन, राम कुमार जैन) सोनीपत से छोटेलाल मिस्त्री को लेकर गये थे जिनका लड़का अपाहिज था। वे मन्दिर जी में कार्य समाप्त करने के बाद अपने लड़के के ठीक होने की मन्नत मांगकर अपने घर चले गए। 15-20 दिन के बाद वे फिर मन्दिर जी में वापस आए और हाथ जोड़कर भगवान श्री चन्द्रप्रभु जी तथा समाज का धन्यवाद किया। उन्होने बताया कि भगवान चन्द्रप्रभु जी के अतिशय के कारण उनका लड़का पहले जैसा ठीक हो गया है। तभी से मन्दिर जी के प्रति लोगों की आस्था बढ़ गई। भटगांव मे रहने वाले जैन धर्म के लोग 1988 से, प्रतिवर्ष 26 जनवरी (गणतन्त्र दिवस) पर यहाँ एक विशाल समारोह का आयोजन करतें हैं। इस समारोह में भाग लेने के लिए दिल्ली, रोहतक, सोनीपत तथा अन्य शहरों से बसों द्वारा लोग दर्शन करने के लिए आते हैं। इस अवसर पर श्री मन्दिर जी में पूजन भजन नृत्यगान आदि कार्यक्रम उल्लास से होते हैं, तथा इसके बाद जलपान की व्यवस्था मन्दिर जी में नि:शुल्क की जाती है। यह परम्परा आज तक सुचारू रूप से चल रही है। इस कार्य का संचालन भटगांव के जैन निवासी जो आजकल भिन्न-भिन्न शहरों में रहते है वही कर रहे हैं।
मंदिर जी के अतिशय
कई बार मन्दिर में रहने वाले पण्डित जी ने वहां के निवासियों को बताया की रात्रि के समय मंदिर जी में देव दर्शन करने आते हैं और वह भाव-विभोर होकर नृत्य-गान करते हैं जिसकी आवाज उन्होंने कई बार सुनी है। हाल मे कुछ वर्ष पूर्व मन्दिर के सदस्यों ने रंग रोगन करवाने के लिए एक कारीगर को मंदिर जी में बुलवाया। वह बुरा इरादा रखते हुए मंदिर जी में कार्य कर रहा था। जिसकी वजह से वह मन्दिर जी के शिखर पर चढ़ते समय गिर गया। उसके बाद दूसरे कारीगर को बुलाया गया। उसका लड़का बहुत बीमार था मंदिर जी में काम करने से पहले वह मन्नत मांगता है की भगवान मेरा बेटा ठीक हो जाये। वह मंदिर की का सारा कार्य शुद्ध भाव से करता रहा। भगवान के अतिशय से उनका बेटा बिल्कुल ठीक होगया।
कुछ समय पूर्व तीन-चार चोर चोरी के भाव से मंदिर जी में प्रवेश करते है किन्तु अतिशय के कारण अपनी नेत्र ज्योति खो बैठते है। एक व्यक्ति रोज़गार नहीं होने की वजह से मन्नत मांगने मन्दिर जी आया और उसकी मन्नत पूरी हो गई, इस खुशी में वह मन्दिर जी में दोबारा आया और सोने का छत्र चढ़ा कर गया। मंदिर जी के पुजारी बताते है की एक बार उनके लड़के की तबियत बहुत खराब हो गई थी। उन्होंने अपने लड़के के ईलाज के लिए कई जगह पता किया, लेकिन कही भी उसे आराम नहीं आया। पुजारी जी की पत्नी कि भगवान चन्द्रप्रभु जी में गहरी आस्था थी, उन्होंने मंदिर जी में भगवान चन्द्रप्रभु जी की प्रतिमा के आगे लड़के के ठीक होने की विनती करी। कुछ समय में ही उनके लड़के का स्वास्थ्य पहले जैसा ठीक हो गया।
लाला हुकुमचन्द जैन परिचय
इतिहासकार भूप सिंह राजपूत ने बताया कि लाला हुकुमचन्द जैन का जन्म वर्ष 1816 में हांसी में दुनीचंद जैन के घर हुआ था। इनकी आरम्भिक शिक्षा हांसी में हुई थी। अपनी शिक्षा व प्रतिभा के बल पर इन्होंने मुगल बादशाह बहादुर शाह जफ़र के दरबार में पद प्राप्त कर लिया। सन 1841 में मुगल बादशाह ने इनको हांसी और करनाल जिले के इलाकों का कानूनगो व प्रबंधकर्ता नियुक्त किया। सात साल तक मुगल बादशाह के दरबार में रहे। इसके बाद हांसी लौट आए। इस बीच अंग्रेंजो ने हरियाणा को अपने अधीन कर लिया। लाला हुकुमचंद ब्रिटिश शासन में भी कानूनगो बने रहे। सन् 1857 में स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बजा तब लाला हुकुमचंद दिल्ली में आयोजित देशभक्तों के सम्मेलन में शामिल हुए। इसमें तांत्या टोपे भी उपस्थित थे। बहादुर शाह जफर के साथ संबंधों के चलते लाला हुकुमचंद जैन ने ब्रितानियों के विरुद्ध युद्ध करने की पेशकश की। बहादुर शाह ने भी हुकुमचंद को सेना, गोला-बारुद सहित युद्ध सामग्री की हर संभव सहायता का भरोसा दिलाया। हांसी आकर देशभक्त वीरों को एकत्रित किया। हिसार से हांसी होकर दिल्ली पर धावा बोलने जा रही अंग्रेजी सेना पर लाला हुकमचंद जैन ने अपने साथियों के साथ हमला किया। बेहद कम युद्ध सामग्री, संसाधनों के बावजूद संघर्ष किया। लाला हुकुमचंद जैन व उनके साथी मिर्जा मुनीर बेग ने गुप्त रुप से एक पत्र फ़ारसी भाषा में मुगल सम्राट को लिखा। जिसमें युद्ध सामग्री की मांग की। दिल्ली से उस पत्र का उत्तर नहीं आया। इसी बीच दिल्ली पर अंग्रेजों ने कब्जा कर मुगल सम्राट को गिरफ्तार कर लिया गया। 15 नवंबर 1857 को अंग्रेजों के हाथ लाला हुकुमचंद और मिर्जा मुनीर बेग के हस्ताक्षरों वाला वह पत्र लग गया। दिल्ली के कमिश्नर सी.एस. सांडर्स ने हिसार के कमिश्नर नव कार्टलैंड को वह पत्र भेजते हुए कठोर कार्रवाई के लिए लिखा। लाला हुकुमचंद और मिर्जा मुनीर बेग, हुकुमचंद जैन के 13 वर्षीय भतीजे फकीर चंद को भी गिरफर कर लिया गया। हिसार में इन पर मुकदमा चलाया। दिखावटी कार्रवाई के बाद 18 जनवरी 1858 को हिसार के मजिस्ट्रेट जॉन एटकिंसन ने लाला हुकुमचंद और मिर्जा मुनीर बेग को फांसी की सजा सुना दी। फकीर चंद को मुक्त करने के बावजूद 19 जनवरी 1858 को लाला हुकुमचंद और मिर्जा मुनीर बेग को लाला हुकुमचंद के मकान के सामने फांसी दे दी गई। अंग्रेजों ने घृणा दिखाते हुए धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए हुकुमचंद जैन के शव को धर्म के विरुद्ध दफनाया, जबकि मुनीर बेग के शव को जलाया। बाद में लाला हुकुमचंद जैन जी की संपत्ति को नीलाम कर दिया गया। क्रांतिकारी लाला हुकुम चंद जैन के दो लड़के थे। बड़े लड़के का नाम न्यामत सिंह छोटे बेटे का सुगम जैन था। न्यामत के 7 लड़के थे और सुगम के पांच लड़के थे। 1857 के बाद मिर्जा मुनेर का पूरा परिवार वर्तमान पाकिस्तान चला गया था। हांसी में लाला हुकुम चंद जैन व मिर्जा मुनेर बेग प्रमुख क्रांतिकारी थे। लाला हुकुम चंद जैन जी की हवेली डडल पार्क के सामने है। मिर्जा मुनेर की हांसी में कोई भी निशानी व प्रॉपर्टी नहीं है। 19 जनवरी को लाला हुकुम चंद जैन का बलिदान दिवस हांसी की डडल पार्क में मनाया जाता है उस दिन उनका परिवार एकत्रित होता है।
जैन समाज एवं सुविधाए
कभी भटगांव में लगभग पचास जैन परिवारों का समाज था किन्तु वर्तमान समय में केवल एक जैन परिवार रह गया है। इसी परिवार द्वारा मंदिर जी की देख-रेख एवं साफ-सफाई का कार्य देखा जाता है। संख्या में जैन परिवार कम होने के बावजूद भी यहाँ दूर के क्षेत्रों से लोग आकर मंदिर जी में दर्शन करते है। मंदिर जी के लिए समिति का निर्माण किया गया है। मंदिर जी में साधु-महाराज जी के आगमन पर त्यागी भवन का निर्माण किया गया है। यदि कोई यात्री मंदिर जी में दूर के क्षेत्र से दर्शन करने के लिए आता है, तो उसके रुकने की व्यवस्था के रूप में दो कमरे मंदिर जी में बने है। मंदिर जी में प्रतिदिन प्रतिमाओं का जलभिषेक मंदिर जी में ही बने प्राचीन कुंए के द्वारा किया जाता है। भटगांव सोनीपत से 13 कि.मि. की दूरी पर फरमाना रोड़ पर स्थित है और बसे हर आधे घंटे में सोनीपत से उपलब्ध है।
क्षेत्र के बारे में
भटगांव जिला सोनीपत (हरियाणा) मे एक प्राचीन ग्राम है। यह एक छोटा सा गाँव है जो कि ग्रामीण भारतीय जीवनशैली को प्रतिष्ठित करता है। यहाँ की आबादी मुख्य रूप से कृषि और संबंधित गतिविधियों पर आधारित है। यह ग्राम प्राचीन समय से ही धन धान्य से परिपूर्ण है। भटगांव बहुत प्राचीन गांव है। सम्भवत: ऐसा प्रतीत होता है कि भटगांव, पानीपत की प्रथम लड़ाई से पूर्व बसा हुआ ग्राम है क्योंकि उस समय जो पानीपत की लड़ाईयाँ लड़ी गई थी, इसी क्षेत्र के आस-पास थी, जहाँ सिपाहियों को शिविर के रुप में रखा जाता था। उसी के आधार पर इस गांव का नाम भटगांव पड़ा है। इस गांव की प्रशंसा को सुनकर स्वर्गीय प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरु जी के समय 1956 में रूस के राष्ट्रपति बुलगारिन क्रिस्त्रो ने गांव देखने की इच्छा प्रगट की थी। भारत सरकार द्वारा गांव में बिजली तथा साफ-सफाई के उद्देश्य से पुरे गांव में जगह-जगह सफेद रंग का प्रयोग किया गया। उस समय स्व दारा सिंह पहलवान कि कुश्ती कला को भी लोगों ने देखा।
समिति
मंदिर जी के सुचारू संचालन हेतु श्री दिगम्बर जैन मंदिर समिति का निर्माण किया गया है। समिति में कार्यरत सदस्य इस प्रकार है -
अध्यक्ष - श्री राम कुमार जैन
उपाध्यक्ष - श्री महावीर प्रसाद जैन
सचिव - श्री शिखर चन्द जैन
कोषाध्य्क्ष - श्री धर्मपाल जैन
सदस्य - श्री जिनेन्द्र कुमार जैन